अशोकनगर रामलीला में श्री हनुमान जी अपनी विशाल काय देह से एक भवन से दूसरे भवन पर जाने लगे और देखते ही देखते पूरी लंका धधकने लगी विभीषण के घर को छोड़कर सारी लंका जलने लगी हर और हाहाकार मच गया अब हनुमान जी अति सूक्ष्म रूप धरकर समुद्र में कूद गए और देखा की पूछ का एक बाल भी नहीं जला अब हनुमान जी सीता माता के पास पहुंचे और हाथ जोड़कर खड़े हो गए और श्री राम को देने के लिए कोई निशानी मांगी माता सीता ने अपनी चूड़ामणि उतार कर हनुमान जी को दी और कहा कि प्रभु श्री राम के चरणों में मेरा प्रणाम देना और कहना यदि उन्हें आने में 1 महीने से क्षण भर भी ज्यादा समय लिया तो मुझे जीवित नहीं देख सकेंगे माता सीता का संदेश लेकर हनुमान जी वापस समुद्र पार कर अन्य साथियों के पास पहुंच गए हनुमान जी की गर्जना और उनके चेहरे का तेज देखकर सब समझ गया हनुमान प्रभु श्री राम के काम को अंजाम देकर ही लोटे है इधर रावण को पता चला की राम लक्ष्मण की सेवा समुद्र के उसे पर आ चुकी है तो रावण ने अपना दरबार लगाया सभी से सलाई ली कि अब हमको क्या करना चाहिए तभी विभीषण को बुलवाया सीता हरण का वाक्य सुनकर विभीषण ने कहा कि है भाई माता सीता को प्रभु श्री राम जी को वापस कर दो और क्षमता मांगो तभी रावण क्रोधित हो जाता है रावण भरे दरबार में भीषण को दुश्मन की प्रशंसा करने के लिए अपनी सभा से लात मार कर लंका से देश निकाल देता है तभी विभीषण राम जी की शरण में पहुंच जाते हैं राम जी उन्हें गले लगा लेते हैं और नलनील द्वारा समुद्र तट बांधकर ओर समुंद्र पार कर लंका पर चढ़ाई करते हैं